उत्तर प्रदेश: लखनऊ और कानपुर में NCC मॉडल पर ई-बसों का संचालन, कैबिनेट ने दी मंजूरी
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Yugvarta
, Sep 02, 2025 06:59 PM 0 Comments
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Lucknow :
लखनऊ, 2 सितंबर : उत्तर प्रदेश सरकार ने आज अपनी कैबिनेट बैठक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए जनपद लखनऊ और जनपद कानपुर नगर के साथ-साथ उनके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (NCC) मॉडल के तहत इलेक्ट्रिक बसों (ई-बस) के संचालन को मंजूरी प्रदान की है। इस पायलट प्रोजेक्ट का उद्देश्य नगरीय परिवहन को पर्यावरण-अनुकूल, व्यवस्थित, और उपभोक्ता-केंद्रित बनाना है, साथ ही सरकारी वित्तीय बोझ को कम करते हुए निजी निवेश को प्रोत्साहित करना है।
नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव श्री अमृत अभिजात ने इस निर्णय की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, "नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट मॉडल नागरिकों के आवागमन की सुविधा सुनिश्चित करते हुए निजी ऑपरेटरों को अधिक व्यावसायिक स्वतंत्रता और प्रोत्साहन प्रदान करके परिवहन सेवाओं की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार लाएगा। यह योजना पर्यावरण संरक्षण, तकनीकी नवाचार, और उपभोक्ता संतुष्टि को बढ़ावा देगी, जिससे नगरीय परिवहन और अधिक सुलभ और टिकाऊ बनेगा।"
नगरीय परिवहन निदेशालय, जो नगर विकास विभाग के अधीन नगरीय परिवहन सेवाओं के नियोजन, क्रियान्वयन और निगरानी के लिए स्थापित किया गया है, इस परियोजना को लागू करेगा। वर्तमान में निदेशालय द्वारा प्रदेश के 15 नगर निगमों में 743 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है, जिनमें से 700 बसें ग्रॉस कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (GCC) मॉडल के तहत संचालित हो रही हैं। पायलट प्रोजेक्ट के रूप में नेट कॉस्ट कॉन्ट्रैक्ट (NCC) मॉडल पर जनपद लखनऊ तथा जनपद कानपुर नगर एव उसके समीपवर्ती महत्वपूर्ण कस्बों में ई-बसों को सचालित किये जाने का निर्णय लिया गया है।
इस पायलट प्रोजेक्ट के तहत, जनपद लखनऊ और जनपद कानपुर नगर में 10-10 मार्गों (कुल 20 मार्ग) पर 9 मीटर की वातानुकूलित (एसी) इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जाएगा। प्रत्येक मार्ग पर न्यूनतम 10 बसें होंगी, जिसका अर्थ है कि दोनों जनपदों में कुल 200 ई-बसें संचालित की जाएंगी। कॉन्ट्रैक्ट की अवधि वाणिज्यिक संचालन तिथि (Commercial Operation Date) से 12 वर्ष की होगी। साथ ही सरकार द्वारा चयनित मार्गों पर किसी अन्य निजी ऑपरेटर को संचालन की अनुमति नहीं दी जाएगी, जिससे ऑपरेटरों को व्यावसायिक स्थिरता और एकाधिकार प्राप्त होगा।
प्रत्येक मार्ग पर 10 ई-बसों के संचालन के लिए अनुमानित लागत लगभग ₹10.30 करोड़ है, जिसमें से ₹9.50 करोड़ बसों की खरीद और ₹0.80 करोड़ चार्जर व अन्य उपकरणों पर खर्च होंगे। वित्तीय की व्यवस्था निजी ऑपरेटर द्वारा व्यवस्था को इक्विटी, वाणिज्यिक उधारी, या लीजिंग के माध्यम से की जाएगी|
इस मॉडल की एक प्रमुख विशेषता यह है कि निजी ऑपरेटर किराया संग्रह (Fare Box Revenue) और गैर-किराया संग्रह (Non-Fare Box Revenue) का 100 प्रतिशत एकत्र करेंगे। किराये शुल्क का निर्धारण सरकार द्वारा किया जाएगा, जिसे समझौता शर्तों के अनुसार समय-समय पर पुनरीक्षित किया जा सकेगा। यह व्यवस्था शहरी परिवर्तन के क्षेत्र में निजी ऑपरेटरों को यात्रियों को आकर्षित करने और सेवा गुणवत्ता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगी।
सरकार निजी ऑपरेटरों को संचालन में सहयोग प्रदान करेगी। परिवहन विभाग और क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण (आरटीओ/आरटीए) के माध्यम से रूट लाइसेंस प्राप्त किए जाएंगे, जिससे ऑपरेटरों को विशिष्ट मार्गों पर बसें संचालित करने की अनुमति मिलेगी। इसके अतिरिक्त, ई-बसों के लिए विद्युत अवसंरचना और अपार्चुनिटी चार्जिंग की सुविधा भी सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी।
प्रमुख सचिव श्री अमृत अभिजात ने इस योजना के पर्यावरणीय और सामाजिक लाभों पर जोर देते हुए कहा, "ई-बसों का संचालन न केवल वायु प्रदूषण को कम करेगा, बल्कि यात्रियों को आधुनिक, आरामदायक, और समयबद्ध परिवहन सेवाएं प्रदान करेगा। निजी ऑपरेटरों की प्रतिस्पर्धा से नवीनतम तकनीकों का उपयोग और सेवा में निरंतर सुधार होगा, जिसका सीधा लाभ आम जनता को मिलेगा।निजी ऑपरेटरों को दक्षता, समयबद्धता, और उपभोक्ता संतुष्टि पर ध्यान देना होगा, जिससे परिवहन सेवाएं और अधिक विश्वसनीय बनेंगी।"
ऑपरेटरों का चयन पारदर्शी निविदा प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा, जिससे प्रतिस्पर्धा और निष्पक्षता सुनिश्चित होगी। सरकार द्वारा नियमित निगरानी के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि सेवाएं निर्धारित मानकों के अनुरूप हों और यात्रियों को कोई असुविधा न हो।
यह पायलट प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश में नगरीय परिवहन के क्षेत्र में एक नया मॉडल स्थापित करेगा। यदि यह परियोजना सफल रहती है, तो इसे प्रदेश के अन्य शहरों में भी लागू किया जा सकता है। इससे न केवल परिवहन सेवाएं और सुलभ होंगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास को भी बढ़ावा मिलेगा।