Maha Kumbh 2025: आखिर खुद को साध्वी क्यों नहीं मानती हर्षा महाकुंभ में जमकर वायरल हो रही है हर्षा रिछारिया
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Yugvarta
, Jan 16, 2025 11:28 PM 0 Comments
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Prayagraj :
प्रयागराज महाकुंभ में पेशवाई के रथ पर बैठने के बाद चर्चा में आईं हर्षा रिछारिया ने संन्यास नहीं लिया है। ऐसा दावा उनके माता-पिता ने किया।
पिता दिनेश रिछारिया ने कहा- बेटी पर साध्वी का टैग गलत लगाया गया। उसने सिर्फ दीक्षा ली है। संन्यास नहीं लिया है, जल्द ही उसकी शादी करेंगे।
पिता ने बुधवार को एक मीडिया चैनल से ये बातें कहीं।
साध्वी बनने के लिए महिला को बड़ी कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। साध्वी बनने के लिए कई चीजों का त्याग करना पड़ता है।
साध्वी बनने से पहले महिला के घर परिवार और यहां तक की उनकी जन्म कुंडली की जांच की जाती है।
साथ ही साध्वी को यह भी साबित करना पड़ता है कि उनका अब अपने परिवार और समाज से कोई रिश्ता नाता नहीं है। उन्हें मोह का त्याग करना होता है।
साध्वी को भौतिक सुख साधनों का भी त्याग करना पड़ता है और तामसिक भोजन से जीवन भर के लिए परहेज करना पड़ता है।
साथ ही महिला साध्वी को जीवनभर भगवा रंग के वस्त्र धारण करने होते हैं। साध्वी बनने की प्रक्रिया से पहले अपना सिर मुंडवाना होता है। इसके बाद शुद्धिकरण के लिए किसी पवित्र नदी में कम से कम 100 बार डुबकी लगानी होती
साध्वी बनने की क्या प्रक्रिया होती है?
साध्वी बनने के लिए महिला को बड़ी कड़ी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। साध्वी बनचीजों का त्याग करना पड़ता है।
साध्वी बनने से पहले महिला के घर परिवार और यहां तक की उनकी जन्म कुंडली की जांच की जाती है।
साथ ही साध्वी को यह भी साबित करना पड़ता है कि उनका अब अपने परिवार और समाज से कोई रिश्ता नाता नहीं है। उन्हें मोह का त्याग करना होता है।
साध्वी को भौतिक सुख साधनों का भी त्याग करना पड़ता है और तामसिक भोजन से जीवन भर के लिए परहेज करना पड़ता है।
साथ ही महिला साध्वी को जीवनभर भगवा रंग के वस्त्र धारण करने होते हैं। साध्वी बनने की प्रक्रिया से पहले अपना सिर मुंडवाना होता है। इसके बाद शुद्धिकरण के लिए किसी पवित्र नदी में कम से कम 100 बार डुबकी लगानी होती है।
साध्वी बनने के लिए सबसे पहले जरूरत होती है गुरु की। गुरु से दीक्षा लेने के बाद ही साध्वी बनने का आगे का रास्ता बनता है।
गुरु दीक्षा में गुरु अपने शिष्य को मंत्र देने के साथ-साथ ज्ञान भी देते हैं। गुरु दीक्षा लेने के बाद सांसारिक जीवन से मोह का त्याग कर धार्मिक किताबों को बढ़ना शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करना होता है।
साथ ही एक बाद जब किसी को गुरु सेवा मिल जाती है तो उन्हें अपने गुरु की सेवा करनी पड़ती है और उनके आदेशों का पालन करना पड़ता है।
कौन है हर्षा रिछारिय ?हर्षा आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री कैलाशनंदगिरी जी महाराज की शिष्या हैं। वह महाकुंभ में निरंजनी अखाड़े से जुड़ी हैं। हालांकि, अपने सोशल मीडिया पर हर्षा ने खुद को सोशल एक्टिविस्ट, सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर भी बताया हुआ है। हर्षा मूलरूप से उत्तराखंड की रहने वाली हैं। अध्यात्म से जुड़ने से पहले वह एंकरिंग किया करती थी। हालांकि, हर्षा ने यह साफ किया है कि करीब पौने दो साल पहले उन्हें अपने गुरु से दीक्षा ली थी। सिर्फ दीक्षा लेना ही साध्वी बनना नहीं है